आम आदमी पार्टी कई राज्यों में अच्छे मुकाबले में – फोटो : istock
ख़बर सुनें
ख़बर सुनें
गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे 8 दिसम्बर को आने वाले हैं। उससे पहले विभिन्न ऐजेंसियों द्वारा कराए गए एक्जिट पोल के नतीजे आ चुके हैं, जो कि भाजपा के पक्ष में स्पष्ट रुझान दिखा रहे हैं। इससे पहले ओपीनियन पोल के नतीजे भी भाजपा की ओर ही संकेत कर रहे थे। कुछ ऐजेंसियों के एक्जिट पोल में आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली नगर निगम में और भाजपा को गुजरात में भारी जीत के साथ कांग्रेस को हिमाचल में जीत मिलने की संभावना प्रकट की गई है। वैसे भी वहां कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर मानी जा रही थी। फिर भी अगर हिमाचल में भाजपा चुनाव जीतती है तो उत्तराखण्ड की ही तरह इसका श्रेय आप पार्टी को ही जाएगा।
गुजरात में कांग्रेस की बहुत खराब परफार्मेंस दिखाई दे रही है जबकि भाजपा की रिकार्ड जीत की संभावना है और इसका श्रेय भी आप पार्टी को ही जाता है। वास्तव में कांग्रेस की हार में ही आम आदमी पार्टी की जीत है। इसके लिए कांग्रेस भले ही आप को भाजपा की ‘बी’ टीम कहे लेकिन सच्चाई यह है कि ‘आप’ तब तक राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की असली प्रतिद्वन्दी नहीं बने सकेगी जब तक कि बीच में बीमार, मगर विशालकाय कांग्रेस की मौजूदगी रहेगी।
मुफ्त की गारंटियों का निशाना भी कांग्रेस
गुजरात में आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार इशुदान गढ़वी का दावा है कि पार्टी ने वहां 50 लाख गारंटी कार्ड बांटे थे, जिनमें मुफ्त बिजली, 5 हजार रुपये महीना बेरोजगारी भत्ता, 18 साल से अधिक उम्र की महिला को 1 हजार रुपये महीना आदि की गारंटियां थीं। इसी प्रकार पार्टी ने उत्तराखण्ड में भी लाखों की संख्या में गारंटी कार्ड बांट थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि चुनाव से पहले बड़ी संख्या में लोगों ने बिजली के बिल जमा करने बंद कर दिए। लेकिन इतनी गारंटियां देने के बाद भी पार्टी उत्तराखण्ड में एक भी सीट नहीं जीत सकी। उसका मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी अपनी जमानत तक जब्त करा गया। बाद में उन्होंने पार्टी को ही अलविदा कर कर भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन उत्तराखण्ड में जबरदस्त एण्टी इन्कम्बेंसी और बारी-बारी सरकारें बदलने के ट्रेंड के बावजूद कांग्रेस के सत्ता में न आ पाने से आप का मकसद तो पूरा हो ही गया।
हिमाचल में दो पार्टी का ट्रेंडड टूटा तो आप को जाएगा श्रेय
उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश दोनों ही सहोदर हिमालई राज्य हैं जिनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियां मिलती जुलती हैं। हिमाचल की ही तरह उत्तराखण्ड में भी पिछले 20 सालों से दो पार्टी सिस्टम चल रहा था। हिमाचल की ही तरह उत्तराखण्ड में भी एण्टी इन्कम्बेसी फैक्टर काम करता रहा है। लेकिन भाजपा उस ट्रेंड को तोड़ने में कामयाब रही।
इसके लिए भाजपा का बेहतरीन चुनावी प्रबंधन और संगठित संगठन तो जिम्मेदार थे ही लेकिन साथ में ’’आप’’ की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने भी भाजपा की काफी मदद कर गई। अगर हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा बारी-बारी चुनाव जीतने का ट्रेंड तोड़ती है, तो इसका श्रेय काफी हद तक ‘‘आप’’ को दिया जा सकता है।
ललकारा मोदी को, चुनौती राहुल को
प्रधानमंत्री मोदी की छवि और अमित शाह की चाणक्य बुद्धि के आगे उनके ही गृह राज्य गुजरात में उनको ललकार कर सीधे सत्ता की दावेदारी करना अरविंद केजरीवाल का दुस्साहस नहीं बल्कि एक सुविचारित रणनीति थी। गुजरात में केजरीवाल का मकसद कांग्रेस को तीसरे नम्बर पर धकेल कर स्वयं दूसरे नम्बर पर आना था ताकि यह साबित किया जा सके कि अब मोदी का मुकाबला इस देश में केजरीवाल के अलावा कोई अन्य नहीं कर सकता। एक्जिट पोल के नतीजों से भाजपा की भारी जीत और आप की अच्छी उपस्थिति तो नजर आ रही है मगर दूसरे नंबर की पोजिशन काफी दूर लगती है। फिर भी अगर कांग्रेस आप से पीछे जाती है तो समझो कि केजरीवाल का मकसद पूरा हो गया।
अगर मकसद पूरा हो गया तो 2024 के चुनाव में विपक्षी दलों की ओर से नरेन्द्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी के बजाय अरविंद केजरीवाल की साझा चेहरा बनने की संभावना बढ़ जाएगी। राजनीति में कुछ भी संभव है। नरेन्द्र मोदी भी गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही देश के प्रधानमंत्री बने थे। एचडी. देवगौड़ा भी पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री ही तो थे। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल को ‘‘पप्पू’’ समझना भूल ही होगी।
लोकपाल भूल कर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजर
अरविन्द केजरीवाल की ‘‘आप’’ का गठन अन्ना हजारे के सन् 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल आन्दोलन की भारी सफलता के बाद नवम्बर 2012 में हुआ था। देखा जाए तो यह अन्ना हजारे के आन्दोलन की ही उपज थी और इसमें उसी आन्दोलन के प्रमुख नेता शामिल थे, जिनमें से अधिकांश धीरे-धीरे खिसकते गए और केजरीवाल पार्टी के एकछत्र नेता बन गए। नेताओं के खिसकने के साथ ही पार्टी के लोकपाल जैसे असली मुद्दे भी खिसक गए। जिस लोकपाल/लोकायुक्त के नाम पर इतना बड़ा आन्दोलन हुआ उसे केजरीवाल भूल गए।
जिस लोकपाल को वह ‘‘जोकपाल’’ कह कर उपहास उड़ाते थे, वह भी उनको हासिल नहीं हुआ और दिल्ली में आज भी 1996 का लोकायुक्त चल रहा है। उन्होंने जो लोकायुक्त केन्द्र सरकार को भेजा था वह संवैधानिक कारणों से मंजूर नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने संसद द्वारा लोकपाल के साथ सर्वसम्मति से पारित लोकायुक्त भी नहीं अपनाया जबकि यह काफी कारगर था।
अब केजरीवाल लोकायुक्त का नाम तक नहीं लेते। यद्यपि दिल्ली में कई मामलों में अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर काम हुआ है जिसका फल उनको 2015 के बाद लगातार 2020 में भी मिला और अब नगर निगम चुनावों में भी मिलने जा रहा है।
कांग्रेस की जगह लेने की खुशफहमी क्यों न हो?
कभी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और पूरब से लेकर पश्चिमत तक एकछत्र राज करने वाली ऐतिहासिक कांग्रेस पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। उसके नेता इसे डूबता जहाज मानकर वहां से फुदक कर भाजपा जैसे मजबूत जहाज में चढ़ रहे हैं। कोई भी प्रतिद्वन्दी दल चाहता भी यही है। कांग्रेस आज राजस्थान और छत्तीसगढ़ दो राज्यों तक सिमट गई। मध्यप्रदेश-कर्नाटक जैसे राज्यों में वह अपनी सरकार नहीं बचा पाई, जबकि गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में सिंगल लार्जेेस्ट पार्टी होते हुई भी उसने भाजपा के लिये मैदान छोड़ दिया।
उत्तराखण्ड में वह सत्ता के करीब आते-आते दूर जा गिरी। दूसरी ओर केजरीवाल की आप कांग्रेस के बराबर ही दो राज्यों में सत्ता में है। कांग्रेस की शक्ति का क्षरण हो रहा है तो आप गंवाने के बजाय कुछ न कुछ पा ही रही है। ऐसे में उसे देश की राजनीति में कांग्रेस की जगह लेने की खुशफहमी क्यों न हो? वह दिल्ली के बाद पंजाब में भी काबिज हो गई।
भाजपा से पहले आप को कांग्रेस से पार पाना है
महत्वाकांक्षा पालने का नैसर्गिंक अधिकार तो सभी को होता है। केजरीवाल की पार्टी को भी दिल्ली के बाद पंजाब और अब सारे देश पर शासन करने के सपने देखने का पूरा अधिकार है। लेकिन ख्वाबों और हकीकतों में बहुत बड़ा अन्तर है। मोदी या भाजपा से पार पाना और कांग्रेस जैसी विशाल पार्टी का विकल्प बनना इतना आसान नहीं जितना समझा जा रहा है।
कहते हैं मरा हुआ हाथी भी सवा लाख का होता है। कांग्रेस अभी तो मरणासन्न स्थिति तक भी नहीं पहुंची है। कांग्रेसी इमानदारी से और निष्ठा से जुटें तो पार्टी पुनः पूरी ताकत के साथ खड़ी हो सकती है। आज की तारीख में कांग्रेस और आप की तुलना करना ही अटपटा लगता है। मरी हालत में भी कांग्रेस का ढांचा आज भी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक है। भले ही भाजपा के जितने न हों फिर भी कांग्रेस से बड़ी संख्या में लोग भवनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं।
कांग्रेसियों ने अगर अपने स्वार्थ और आचरण से कांग्रेस का भट्टा न बिठाया होता तो कांग्रेस ऐसी अकेली पार्टी है जिसमें अब भी सम्पूर्ण भारत का अक्स नजर आता है। उसमें सभी धर्म जातियां, संस्कृतियां और भौगोलिक प्रतिबिम्ब नजर आते हैं। जबकि आप भले ही पंजाब तक चली गई हो फिर भी उसकी अभी अखिल भारतीय छवि नहीं बन पाई।
18 में से 15 राज्यों में खाता भी नहीं खुला
कांग्रेस का विकल्प बनने के लिए केजरीवाल की आप ने 2013 से लेकर अब तक 18 राज्यों के 21 विधानसभा चुनाव लडे़ जिनमें से वह केवल दिल्ली और पंजाब में ही सफल हो पाई। दिल्ली और पंजाब के बाद उसे केवल गोवा में 2022 में 2 सीटें मिली, मगर वह कांग्रेस को हरवाने में कामयाब अवश्य हुई। बाकी 15 राज्यों में उसे अब तक एक भी सीट नहीं मिल पाई।
आप द्वारा पूरी ताकत झोंकने के बाद भी विधानसभा चुनाव में खाता तक न खोल पाने वाले राज्यों में गुजरात, हरियाणा, झारखण्ड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र मेघालय, नागालैंड, उड़ीसा, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड शामिल है। इनमें केजरीवाल की पार्टी उत्तर प्रदेश में 340 सीटों पर, राजस्थान में 142, मध्य प्रदेश में 208 और हरिषणा में 46 सीटों पर लड़ी थी। जबकि कांग्रेस के इस हाल में भी लोकसभा में 52 सदस्य हैं और आप का एक भी सदस्य नहीं।
इस हालत में भी 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 11,94,95,214 वोट और कुल मतदान के 19.46 प्रतिशत मत मिले थे, इसलिए आप पार्टी भले ही कांग्रेस को हराने में भाजपा की मदद तो कर सकती है लेकिन अपने दम पर भाजपा को हराने की कल्पना भी बहुत कठिन है।
——- डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
विस्तार
गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे 8 दिसम्बर को आने वाले हैं। उससे पहले विभिन्न ऐजेंसियों द्वारा कराए गए एक्जिट पोल के नतीजे आ चुके हैं, जो कि भाजपा के पक्ष में स्पष्ट रुझान दिखा रहे हैं। इससे पहले ओपीनियन पोल के नतीजे भी भाजपा की ओर ही संकेत कर रहे थे। कुछ ऐजेंसियों के एक्जिट पोल में आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली नगर निगम में और भाजपा को गुजरात में भारी जीत के साथ कांग्रेस को हिमाचल में जीत मिलने की संभावना प्रकट की गई है। वैसे भी वहां कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर मानी जा रही थी। फिर भी अगर हिमाचल में भाजपा चुनाव जीतती है तो उत्तराखण्ड की ही तरह इसका श्रेय आप पार्टी को ही जाएगा।
गुजरात में कांग्रेस की बहुत खराब परफार्मेंस दिखाई दे रही है जबकि भाजपा की रिकार्ड जीत की संभावना है और इसका श्रेय भी आप पार्टी को ही जाता है। वास्तव में कांग्रेस की हार में ही आम आदमी पार्टी की जीत है। इसके लिए कांग्रेस भले ही आप को भाजपा की ‘बी’ टीम कहे लेकिन सच्चाई यह है कि ‘आप’ तब तक राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की असली प्रतिद्वन्दी नहीं बने सकेगी जब तक कि बीच में बीमार, मगर विशालकाय कांग्रेस की मौजूदगी रहेगी।
मुफ्त की गारंटियों का निशाना भी कांग्रेस
गुजरात में आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार इशुदान गढ़वी का दावा है कि पार्टी ने वहां 50 लाख गारंटी कार्ड बांटे थे, जिनमें मुफ्त बिजली, 5 हजार रुपये महीना बेरोजगारी भत्ता, 18 साल से अधिक उम्र की महिला को 1 हजार रुपये महीना आदि की गारंटियां थीं। इसी प्रकार पार्टी ने उत्तराखण्ड में भी लाखों की संख्या में गारंटी कार्ड बांट थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि चुनाव से पहले बड़ी संख्या में लोगों ने बिजली के बिल जमा करने बंद कर दिए। लेकिन इतनी गारंटियां देने के बाद भी पार्टी उत्तराखण्ड में एक भी सीट नहीं जीत सकी। उसका मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी अपनी जमानत तक जब्त करा गया। बाद में उन्होंने पार्टी को ही अलविदा कर कर भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन उत्तराखण्ड में जबरदस्त एण्टी इन्कम्बेंसी और बारी-बारी सरकारें बदलने के ट्रेंड के बावजूद कांग्रेस के सत्ता में न आ पाने से आप का मकसद तो पूरा हो ही गया।
हिमाचल में दो पार्टी का ट्रेंडड टूटा तो आप को जाएगा श्रेय
उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश दोनों ही सहोदर हिमालई राज्य हैं जिनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियां मिलती जुलती हैं। हिमाचल की ही तरह उत्तराखण्ड में भी पिछले 20 सालों से दो पार्टी सिस्टम चल रहा था। हिमाचल की ही तरह उत्तराखण्ड में भी एण्टी इन्कम्बेसी फैक्टर काम करता रहा है। लेकिन भाजपा उस ट्रेंड को तोड़ने में कामयाब रही।
इसके लिए भाजपा का बेहतरीन चुनावी प्रबंधन और संगठित संगठन तो जिम्मेदार थे ही लेकिन साथ में ’’आप’’ की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने भी भाजपा की काफी मदद कर गई। अगर हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा बारी-बारी चुनाव जीतने का ट्रेंड तोड़ती है, तो इसका श्रेय काफी हद तक ‘‘आप’’ को दिया जा सकता है।
ललकारा मोदी को, चुनौती राहुल को
प्रधानमंत्री मोदी की छवि और अमित शाह की चाणक्य बुद्धि के आगे उनके ही गृह राज्य गुजरात में उनको ललकार कर सीधे सत्ता की दावेदारी करना अरविंद केजरीवाल का दुस्साहस नहीं बल्कि एक सुविचारित रणनीति थी। गुजरात में केजरीवाल का मकसद कांग्रेस को तीसरे नम्बर पर धकेल कर स्वयं दूसरे नम्बर पर आना था ताकि यह साबित किया जा सके कि अब मोदी का मुकाबला इस देश में केजरीवाल के अलावा कोई अन्य नहीं कर सकता। एक्जिट पोल के नतीजों से भाजपा की भारी जीत और आप की अच्छी उपस्थिति तो नजर आ रही है मगर दूसरे नंबर की पोजिशन काफी दूर लगती है। फिर भी अगर कांग्रेस आप से पीछे जाती है तो समझो कि केजरीवाल का मकसद पूरा हो गया।
अगर मकसद पूरा हो गया तो 2024 के चुनाव में विपक्षी दलों की ओर से नरेन्द्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी के बजाय अरविंद केजरीवाल की साझा चेहरा बनने की संभावना बढ़ जाएगी। राजनीति में कुछ भी संभव है। नरेन्द्र मोदी भी गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही देश के प्रधानमंत्री बने थे। एचडी. देवगौड़ा भी पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री ही तो थे। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल को ‘‘पप्पू’’ समझना भूल ही होगी।