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Gujarat Election 2022 Bjp Stuck In 70s This Time The Story Is Different Votind Percent Analysis Updates – Gujarat Election: 70 के फेर में फंसी भाजपा, तो बजी बजे खतरे की घंटी! इस बार की कुछ अलग है कहानी

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गुजरात विधानसभा चुनाव 2022
– फोटो : अमर उजाला

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2017 के विधानसभा चुनावों में मोरबी में 73 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। भारतीय जनता पार्टी यहां की सभी सीटें हार गई थी। इसी चुनाव में डांग जिले में तकरीबन 74 फीसदी मतदान हुआ। भारतीय जनता पार्टी यहां की भी सीट हार गई। गिर सोमनाथ में भी तकरीबन 70 फीसदी मतदान 2017 के चुनाव में हुआ था। भारतीय जनता पार्टी यहां की भी चारों सीटें हार गई। गुजरात के ऐसे कुछ और भी जिले हैं जहां पर 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ तो भारतीय जनता पार्टी के हाथ से पूरे जिले की सीटें फिसल गई थी।

सियासी जानकारों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए पिछले चुनावों में 70 के फेर में फंसना मुसीबत लेकर आया था। यही वजह थी कि भारतीय जनता पार्टी 99 के फेर में उलझ कर रह गई। इस बार विधानसभा के चुनावों में मामला थोड़ा बदला हुआ है। सियासी जानकारों का कहना है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी पिछली बार 70 के फेर में आकर सभी सीटों से हाथ धो बैठी थी, इस बार वहां पर मतदान 70 फीसदी से कम हुआ है। इस ट्रेंड पर भारतीय जनता पार्टी के नेता भी राहत की सांस ले रहे हैं। 

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों में 7 जिले ऐसे थे जहां पर भारतीय जनता पार्टी अपना खाता नहीं खोल पाई थी। राजनीतिक जानकारों का कहना है इनमें कुछ जिले ऐसे थे जो आंदोलन प्रभावित थे। जबकि कुछ जिले ऐसे थे जहां पर राजनैतिक समीकरण दुरुस्त नहीं हुए और भारतीय जनता पार्टी को जिले की सभी सीटों से हाथ धोना पड़ा। राजनीतिक विश्लेषक देवभाई राठौर कहते हैं कि 2017 में जिन जिलों में भारतीय जनता पार्टी सभी सीटें हार गई थी उसमें अमरेली, नर्मदा, डांग, तापी, अरावली, मोरबी और गिर सोमनाथ शामिल थे। 

वह कहते हैं कि पहले चरण में 19 जिलों की 89 विधानसभा सीटों पर जो वोट प्रतिशत इस बार रहा है वह भारतीय जनता पार्टी के लिए राहत भरा हो सकता है। देव भाई राठौर का कहना है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का जिन जिलों में सूपड़ा साफ हुआ था उसमें से कुछ जिलों को छोड़ दिया जाए तो वोट प्रतिशत 70 फीसदी से ज्यादा रहा था। यानी कि जहां-जहां पर 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ भारतीय जनता पार्टी को वहां की जनता ने रिजेक्ट कर दिया। लेकिन इस बार उन्हें जिलों में मतदान का प्रतिशत कम हुआ है। 

राठौर कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी इसको अपने लिए मुफीद माहौल बता रही है। उनका कहना है इस बार 2017 की तरह इस बार का विधानसभा चुनाव आंदोलनों की तपिश के बीच में नहीं हो रहा है। रही बात चुनावी मुद्दों की तो वह भी ऐसे नहीं है जो चुनावों की दशा दिशा बदल देते। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी पहले चरण में हुए वोट प्रतिशत से खुद सुरक्षित महसूस कर रही है।

आंकड़ों के मुताबिक मोरबी जिले में 2017 के विधानसभा चुनावों में 73 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। ज्यादा मतदान होने पर मोरबी की तीनों विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के हाथ से निकल गई थी। लेकिन इस साल मोरबी में 69 फीसदी मतदान हुआ है। इसी तरह से 2017 के विधानसभा चुनावों में गिर सोमनाथ में 70 फीसदी मतदान हुआ था। यहां की चारों विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी हार गई थी। इस बार गिर सोमनाथ में 65 फीसदी हुआ है। डांग जिले में एक ही विधानसभा सीट आती है। 2017 के विधानसभा चुनावों में डांग में 74 फ़ीसदी के करीब मतदान हुआ था और भारतीय जनता पार्टी के हाथ से यह सीट चली गई थी। इस बार मत प्रतिशत यहां पर 67 फीसदी ही हुआ है। 

इन जिलों के अलावा कुछ सीटें और भी हैं। जहां पर वोट प्रतिशत इस बार भी 70 फीसदी से ज्यादा हुआ है। यही वजह है कि सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर चल रहा है कि क्या 70 के फेर में भारतीय जनता पार्टी फिर तो नहीं फंसने वाली है। हालांकि सियासी जानकार हरीश भाई पटेल कहते हैं कि पिछले चुनावों की तरह इस बार सियासी हालात थोड़े बदले हुए हैं। लेकिन चुनाव में कुछ भी पहले कहना मुनासिब नहीं होता है। 

हरीश भाई पटेल कहते हैं कि गुजरात के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच में ही लड़ाई मानी जा रही है। कुछ सीटें जरूर है जहां पर आम आदमी पार्टी ने भाई को त्रिकोणात्मक और रोचक बना दिया है। वह कहते हैं कि आंकड़ों के मुताबिक 2017 के विधानसभा चुनावों में नर्मदा जिले में 80 फ़ीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। यहां की दोनों  देड़ियापाड़ा और नांदौड़ विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई थी। इस साल नर्मदा जिले में पिछले साल की तुलना में तकरीबन दो फ़ीसदी ही मतदान कम हुआ है। इसलिए यह कहना कि 70 के फेर से भारतीय जनता पार्टी इस बार बाहर आ गई है, थोड़ा जल्दी होगा।

विस्तार

2017 के विधानसभा चुनावों में मोरबी में 73 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। भारतीय जनता पार्टी यहां की सभी सीटें हार गई थी। इसी चुनाव में डांग जिले में तकरीबन 74 फीसदी मतदान हुआ। भारतीय जनता पार्टी यहां की भी सीट हार गई। गिर सोमनाथ में भी तकरीबन 70 फीसदी मतदान 2017 के चुनाव में हुआ था। भारतीय जनता पार्टी यहां की भी चारों सीटें हार गई। गुजरात के ऐसे कुछ और भी जिले हैं जहां पर 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ तो भारतीय जनता पार्टी के हाथ से पूरे जिले की सीटें फिसल गई थी।

सियासी जानकारों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए पिछले चुनावों में 70 के फेर में फंसना मुसीबत लेकर आया था। यही वजह थी कि भारतीय जनता पार्टी 99 के फेर में उलझ कर रह गई। इस बार विधानसभा के चुनावों में मामला थोड़ा बदला हुआ है। सियासी जानकारों का कहना है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी पिछली बार 70 के फेर में आकर सभी सीटों से हाथ धो बैठी थी, इस बार वहां पर मतदान 70 फीसदी से कम हुआ है। इस ट्रेंड पर भारतीय जनता पार्टी के नेता भी राहत की सांस ले रहे हैं। 

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों में 7 जिले ऐसे थे जहां पर भारतीय जनता पार्टी अपना खाता नहीं खोल पाई थी। राजनीतिक जानकारों का कहना है इनमें कुछ जिले ऐसे थे जो आंदोलन प्रभावित थे। जबकि कुछ जिले ऐसे थे जहां पर राजनैतिक समीकरण दुरुस्त नहीं हुए और भारतीय जनता पार्टी को जिले की सभी सीटों से हाथ धोना पड़ा। राजनीतिक विश्लेषक देवभाई राठौर कहते हैं कि 2017 में जिन जिलों में भारतीय जनता पार्टी सभी सीटें हार गई थी उसमें अमरेली, नर्मदा, डांग, तापी, अरावली, मोरबी और गिर सोमनाथ शामिल थे। 

वह कहते हैं कि पहले चरण में 19 जिलों की 89 विधानसभा सीटों पर जो वोट प्रतिशत इस बार रहा है वह भारतीय जनता पार्टी के लिए राहत भरा हो सकता है। देव भाई राठौर का कहना है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का जिन जिलों में सूपड़ा साफ हुआ था उसमें से कुछ जिलों को छोड़ दिया जाए तो वोट प्रतिशत 70 फीसदी से ज्यादा रहा था। यानी कि जहां-जहां पर 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ भारतीय जनता पार्टी को वहां की जनता ने रिजेक्ट कर दिया। लेकिन इस बार उन्हें जिलों में मतदान का प्रतिशत कम हुआ है। 

राठौर कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी इसको अपने लिए मुफीद माहौल बता रही है। उनका कहना है इस बार 2017 की तरह इस बार का विधानसभा चुनाव आंदोलनों की तपिश के बीच में नहीं हो रहा है। रही बात चुनावी मुद्दों की तो वह भी ऐसे नहीं है जो चुनावों की दशा दिशा बदल देते। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी पहले चरण में हुए वोट प्रतिशत से खुद सुरक्षित महसूस कर रही है।

आंकड़ों के मुताबिक मोरबी जिले में 2017 के विधानसभा चुनावों में 73 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। ज्यादा मतदान होने पर मोरबी की तीनों विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के हाथ से निकल गई थी। लेकिन इस साल मोरबी में 69 फीसदी मतदान हुआ है। इसी तरह से 2017 के विधानसभा चुनावों में गिर सोमनाथ में 70 फीसदी मतदान हुआ था। यहां की चारों विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी हार गई थी। इस बार गिर सोमनाथ में 65 फीसदी हुआ है। डांग जिले में एक ही विधानसभा सीट आती है। 2017 के विधानसभा चुनावों में डांग में 74 फ़ीसदी के करीब मतदान हुआ था और भारतीय जनता पार्टी के हाथ से यह सीट चली गई थी। इस बार मत प्रतिशत यहां पर 67 फीसदी ही हुआ है। 

इन जिलों के अलावा कुछ सीटें और भी हैं। जहां पर वोट प्रतिशत इस बार भी 70 फीसदी से ज्यादा हुआ है। यही वजह है कि सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर चल रहा है कि क्या 70 के फेर में भारतीय जनता पार्टी फिर तो नहीं फंसने वाली है। हालांकि सियासी जानकार हरीश भाई पटेल कहते हैं कि पिछले चुनावों की तरह इस बार सियासी हालात थोड़े बदले हुए हैं। लेकिन चुनाव में कुछ भी पहले कहना मुनासिब नहीं होता है। 

हरीश भाई पटेल कहते हैं कि गुजरात के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच में ही लड़ाई मानी जा रही है। कुछ सीटें जरूर है जहां पर आम आदमी पार्टी ने भाई को त्रिकोणात्मक और रोचक बना दिया है। वह कहते हैं कि आंकड़ों के मुताबिक 2017 के विधानसभा चुनावों में नर्मदा जिले में 80 फ़ीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। यहां की दोनों  देड़ियापाड़ा और नांदौड़ विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई थी। इस साल नर्मदा जिले में पिछले साल की तुलना में तकरीबन दो फ़ीसदी ही मतदान कम हुआ है। इसलिए यह कहना कि 70 के फेर से भारतीय जनता पार्टी इस बार बाहर आ गई है, थोड़ा जल्दी होगा।



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