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Gujarat Election: Compared To 2017 Election, Five Percent Less Voting This Time, Aam Aadmi Party Is Happy – Gujarat Election: सूरत में Aap की आंखों में नजर आ रही चमक, 2017 के मुकाबले क्यों घटी वोटिंग, बैचेन हुई भाजपा

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Gujarat Election: AAP, BJP, Congress
– फोटो : Amar Ujala

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गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग पूरी हो गई है। लेकिन वोटिंग को लेकर लोगों में उत्साह नहीं दिखा। यही वजह रही है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार पांच फीसदी कम वोटिंग हुई है। कम वोटिंग से भाजपा और कांग्रेस में चिंता की लकीरें उभर गई है। लेकिन आम आदमी पार्टी के खेमे में खुशी नजर आ रही है। अरविंद केजरीवाल का पूरा फोकस सूरत की सीटों पर ज्यादा रहा। क्योंकि आप ने यहीं से निगम चुनावों में पहली बार जीत का स्वाद चखा था। इस जीत के बाद आप को यहां अपनी जमीन नजर आने लगी और इसी के दम पर पार्टी पूरे राज्य में विधानसभा चुनाव में उतरी है।

राज्य के सूरत जैसे बड़े शहर में आप की मौजूदगी के चलते भाजपा को अपनी सीटें बचाना बड़ी चुनौती है। दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए परेशानी है। क्योंकि आप के मैदान में उतरने से कांग्रेस के वोट शेयर में और गिरावट आ सकती है। पिछले दो विधानसभा चुनावों के नतीजों की बात करें, तो सूरत की 16 में से 15 सीटें भाजपा के पास गई हैं। 2017 में जहां 66.65 फीसदी मतदान हुआ था। वहीं इस बार 61.71 फीसदी मतदान हुआ हैं। यही अंतर अब कांग्रेस के साथ साथ भाजपा नेताओं को भी डरा रहा है।

सूरत की राजनीति पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि शहर की मजूरा, सूरत पश्चिम, लिंबायत, चौर्यासी, उधना और ओलपाड भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है। लेकिन इस बार सूरत पूर्व में मुकाबला देखने को मिल रहा है। जबकि वराछा, कतारगाम, कामरेज, सूरत उत्तर, करंज में आप के साथ भाजपा की कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। सभी राजनीतिक दलों में चिंता है कि सूरत में इतनी कम वोटिंग क्यों हुई? जबकि सभी दलों को इस चुनाव में खासकर सूरत में अच्छी वोटिंग की आस थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन सबके बीच राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि सूरत में आप को फायदा मिल सकता है। हालांकि कौन सी पार्टी को कितनी सीट हासिल होगी यह 8 दिसंबर को ही पता चलेगा।

भाजपा के लिए गढ़ बचाना चुनौती

2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों की बात करें, तो 2012 में 70 फीसदी मतदान हुआ था। लेकिन 2017 में यह घटकर 66.65 फीसदी पहुंच गया है। जबकि यही मतदान प्रतिशत 2002 में 61 फीसदी तक पहुंच गया था। हर बार कम होते 4 से 5 फीसदी मतदान प्रतिशत ने भाजपा-कांग्रेस की चिंता को बढ़ा दिया है। भाजपा जहां अपना गढ़ बचाने की जुगत में लगी हुई है। जबकि कांग्रेस को अपनी मौजूदगी दर्ज करवानी है। 2012 में जहां भाजपा को प्रदेश में 115 सीटें हासिल हुई थीं, 2017 के चुनाव में यही सीटें घटकर 99 पर आ गई थीं। इस दौरान प्रदेश में पाटीदार आंदोलन सबसे बड़ा मुद्दा था।

पाटीदार बाहुल्य सीटों पर बड़े नेता आए फिर भी मतदान हुआ कम

सूरत की सभी पाटीदार बाहुल्य छह सीटों पर मतदान का प्रतिशत बहुत कम रहा है। पिछले चुनाव में कम मतदान के कारण भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। 2017 में पाटीदार बाहुल्य सूरत की तीन विधानसभा सीट वराछा रोड, कामरेज और करंज में कम मतदान के कारण भाजपा उम्मीदवारों के जीत का अंतर बहुत कम हो गया था। इसके अलावा सूरत उत्तर सीट जो भाजपा को गढ़ माना जाता है वहां भी पार्टी की लीड 2012 के मुकाबले कम हो गई थी। इस बार पिछले चुनाव से भी कम मतदान हुआ है। यह शहर में नए समीकरण को जन्म दे सकते है। आप की ताकत माने जाने वाली पाटीदार बाहुल्य सीट पर भी वोटिंग कम हुई है।

इन सीटों पर आप बिगाड़ सकती है भाजपा का खेल

2017 के चुनाव में सूरत में सीधी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी की थी, लेकिन आम आदमी पार्टी की एंट्री ने इस बार मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया है। हालांकि लोगों का मानना है कि कांग्रेस इस बार लड़ाई में नहीं है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी की एंट्री से भाजपा को ही फायदा होगा। कांग्रेस का वोट बैंक आप में शिफ्ट होगा। सूरत की 16 सीटों में से पांच सीटों पर आप की कड़ी टक्कर भाजपा से है। वराछा, कतारगाम, करंज, ओलपाड़ और कामरेज पाटीदार बहुल सीट है। अरविंद केजरीवाल का फोकस सूरत की इन सीटों पर इसलिए ज्यादा है, क्योंकि यहीं से गुजरात में पहली जीत का स्वाद आप ने चखा था। इस जीत के बाद आप को यहां अपनी जमीन नजर आने लगी और इसी के दम पर अब पार्टी विधानसभा चुनाव में उतरी है। आप के 27 पार्षद भी इन्हीं क्षेत्रों से महानगर पालिका में चुनकर आए हैं। आम आदमी पार्टी ने यहां एक साल में 20 से ज्यादा सभाएं की हैं। इनमें दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान, राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा शामिल हैं।

कतारगाम सीट भी लड़ाई दिलचस्प है। यहां से आप ने गुजरात में आम आदमी पार्टी के संयोजक गोपाल इटालिया को प्रत्याशी बनाया है। इटालिया क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं। वराछा सीट पर आप ने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक रहे अल्पेश कथिरिया को मैदान में उतारा है। पाटीदारों में यह अच्छा रसूख रखते हैं। इसके अलावा करंज सीट से आप ने प्रदेश महामंत्री मनोज सोरठिया को टिकट दिया है।

विस्तार

गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग पूरी हो गई है। लेकिन वोटिंग को लेकर लोगों में उत्साह नहीं दिखा। यही वजह रही है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार पांच फीसदी कम वोटिंग हुई है। कम वोटिंग से भाजपा और कांग्रेस में चिंता की लकीरें उभर गई है। लेकिन आम आदमी पार्टी के खेमे में खुशी नजर आ रही है। अरविंद केजरीवाल का पूरा फोकस सूरत की सीटों पर ज्यादा रहा। क्योंकि आप ने यहीं से निगम चुनावों में पहली बार जीत का स्वाद चखा था। इस जीत के बाद आप को यहां अपनी जमीन नजर आने लगी और इसी के दम पर पार्टी पूरे राज्य में विधानसभा चुनाव में उतरी है।

राज्य के सूरत जैसे बड़े शहर में आप की मौजूदगी के चलते भाजपा को अपनी सीटें बचाना बड़ी चुनौती है। दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए परेशानी है। क्योंकि आप के मैदान में उतरने से कांग्रेस के वोट शेयर में और गिरावट आ सकती है। पिछले दो विधानसभा चुनावों के नतीजों की बात करें, तो सूरत की 16 में से 15 सीटें भाजपा के पास गई हैं। 2017 में जहां 66.65 फीसदी मतदान हुआ था। वहीं इस बार 61.71 फीसदी मतदान हुआ हैं। यही अंतर अब कांग्रेस के साथ साथ भाजपा नेताओं को भी डरा रहा है।

सूरत की राजनीति पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि शहर की मजूरा, सूरत पश्चिम, लिंबायत, चौर्यासी, उधना और ओलपाड भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है। लेकिन इस बार सूरत पूर्व में मुकाबला देखने को मिल रहा है। जबकि वराछा, कतारगाम, कामरेज, सूरत उत्तर, करंज में आप के साथ भाजपा की कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। सभी राजनीतिक दलों में चिंता है कि सूरत में इतनी कम वोटिंग क्यों हुई? जबकि सभी दलों को इस चुनाव में खासकर सूरत में अच्छी वोटिंग की आस थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन सबके बीच राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि सूरत में आप को फायदा मिल सकता है। हालांकि कौन सी पार्टी को कितनी सीट हासिल होगी यह 8 दिसंबर को ही पता चलेगा।

भाजपा के लिए गढ़ बचाना चुनौती

2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों की बात करें, तो 2012 में 70 फीसदी मतदान हुआ था। लेकिन 2017 में यह घटकर 66.65 फीसदी पहुंच गया है। जबकि यही मतदान प्रतिशत 2002 में 61 फीसदी तक पहुंच गया था। हर बार कम होते 4 से 5 फीसदी मतदान प्रतिशत ने भाजपा-कांग्रेस की चिंता को बढ़ा दिया है। भाजपा जहां अपना गढ़ बचाने की जुगत में लगी हुई है। जबकि कांग्रेस को अपनी मौजूदगी दर्ज करवानी है। 2012 में जहां भाजपा को प्रदेश में 115 सीटें हासिल हुई थीं, 2017 के चुनाव में यही सीटें घटकर 99 पर आ गई थीं। इस दौरान प्रदेश में पाटीदार आंदोलन सबसे बड़ा मुद्दा था।

पाटीदार बाहुल्य सीटों पर बड़े नेता आए फिर भी मतदान हुआ कम

सूरत की सभी पाटीदार बाहुल्य छह सीटों पर मतदान का प्रतिशत बहुत कम रहा है। पिछले चुनाव में कम मतदान के कारण भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। 2017 में पाटीदार बाहुल्य सूरत की तीन विधानसभा सीट वराछा रोड, कामरेज और करंज में कम मतदान के कारण भाजपा उम्मीदवारों के जीत का अंतर बहुत कम हो गया था। इसके अलावा सूरत उत्तर सीट जो भाजपा को गढ़ माना जाता है वहां भी पार्टी की लीड 2012 के मुकाबले कम हो गई थी। इस बार पिछले चुनाव से भी कम मतदान हुआ है। यह शहर में नए समीकरण को जन्म दे सकते है। आप की ताकत माने जाने वाली पाटीदार बाहुल्य सीट पर भी वोटिंग कम हुई है।

इन सीटों पर आप बिगाड़ सकती है भाजपा का खेल

2017 के चुनाव में सूरत में सीधी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी की थी, लेकिन आम आदमी पार्टी की एंट्री ने इस बार मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया है। हालांकि लोगों का मानना है कि कांग्रेस इस बार लड़ाई में नहीं है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी की एंट्री से भाजपा को ही फायदा होगा। कांग्रेस का वोट बैंक आप में शिफ्ट होगा। सूरत की 16 सीटों में से पांच सीटों पर आप की कड़ी टक्कर भाजपा से है। वराछा, कतारगाम, करंज, ओलपाड़ और कामरेज पाटीदार बहुल सीट है। अरविंद केजरीवाल का फोकस सूरत की इन सीटों पर इसलिए ज्यादा है, क्योंकि यहीं से गुजरात में पहली जीत का स्वाद आप ने चखा था। इस जीत के बाद आप को यहां अपनी जमीन नजर आने लगी और इसी के दम पर अब पार्टी विधानसभा चुनाव में उतरी है। आप के 27 पार्षद भी इन्हीं क्षेत्रों से महानगर पालिका में चुनकर आए हैं। आम आदमी पार्टी ने यहां एक साल में 20 से ज्यादा सभाएं की हैं। इनमें दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान, राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा शामिल हैं।

कतारगाम सीट भी लड़ाई दिलचस्प है। यहां से आप ने गुजरात में आम आदमी पार्टी के संयोजक गोपाल इटालिया को प्रत्याशी बनाया है। इटालिया क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं। वराछा सीट पर आप ने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक रहे अल्पेश कथिरिया को मैदान में उतारा है। पाटीदारों में यह अच्छा रसूख रखते हैं। इसके अलावा करंज सीट से आप ने प्रदेश महामंत्री मनोज सोरठिया को टिकट दिया है।



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