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Gujarat Election: This Time 200 Candidates Reduced From Contesting Election As Compare To 2017 – Gujarat Election: इस बार गुजरात में चुनावी मैदान से इसलिए कम हो गए 200 प्रत्याशी! क्या हैं इसके सियासी मायने?

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Gujarat Election
– फोटो : Agency (File Photo)

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गुजरात में गुरुवार को पहले चरण का मतदान होगा। यह मतदान 2017 के चुनावों से कई मायनों में सबसे अलग है। सबसे अहम बात तो यह है कि इस बार होने वाले पहले चरण के विधानसभा के चुनावों में 2017 की तुलना में तकरीबन 200 प्रत्याशी चुनावी मैदान में कम हो चुके हैं। यानी कि जितने प्रत्याशी 2017 में चुनाव लड़े थे, उससे 200 प्रत्याशी कम इस बार चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इसके अलावा इस बार गुजरात में चले आंदोलनों का असर भी कम है। तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि इस बार गुजरात में दो सबसे प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के अलावा इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी मैदान में डटी हुई है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गुजरात की सत्ता का रास्ता सौराष्ट्र के राजनैतिक गलियारों से होकर ही गुजरता है। इसलिए सभी राजनीतिक दलों ने यहां पर ना सिर्फ जमकर मेहनत की है, बल्कि चुनावी लिहाज से जीत हासिल करने के लिए सियासत की बिसात पर सभी राजनीतिक मोहरे सजा दिए हैं।

महज 788 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में

राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों में पहले चरण के इन्हीं जिलों की 89 सीटों पर 977  प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। जबकि इस बार 19 जिलों की इतनी ही सीटों पर महज 788 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में गुजरात में 65 राजनीतिक दलों ने चुनावी मैदान में अपने प्रत्याशी उतारे थे। गुजरात में इस बार हो रहे विधानसभा चुनावों में 200 प्रत्याशियों की कम संख्या होने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार ओम भाई राबरिया कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनावों में जिस तरीके से आंदोलनों की हवा चल रही थी और भाजपा का विरोध भी बहुत ज्यादा था। यही वजह थी कि ज्यादातर लोग भाजपा के विरोध में चुनावी मैदान में उतरे थे। हालांकि कांटे की टक्कर के बीच में भारतीय भाजपा सरकार में तो आई, लेकिन अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी।

इस बार सत्ता पक्ष का विरोध कम

ओम भाई कहते हैं कि इस बार 190 प्रत्याशियों का चुनावी मैदान में कम उतरना इस बात को दर्शाता है कि सत्ता पक्ष का विरोध उस कदर नहीं है, जितना कि 2017 के विधानसभा चुनावों में था। हालांकि उनका कहना है कि इस बार आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में मजबूत तरीके से शिरकत करने से कई जगहों पर चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है। सियासी जानकारों का मानना है कि प्रत्याशियों की कम संख्या यह जरूर बताती है कि इस बार करीब दो सौ प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि चुनावी संघर्ष नहीं हो रहा है। वरिष्ठ पत्रकार अनमोल दवे कहते हैं कि गुजरात में 2017 के हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। वह कहते हैं कि गुजरात में सत्ता का रास्ता सौराष्ट्र के गलियारों से होकर के ही गुजरता है। पहले चरण में होने वाले चुनावों में सौराष्ट्र कच्छ के साथ दक्षिण गुजरात की भी सीटें शामिल होती हैं। भाजपा को 2017 के चुनावों में दक्षिण गुजरात में मिली सफलता ने सत्ता तक तो पहुंचा दिया था, लेकिन सौराष्ट्र में कई जिले ऐसे थे, जहां भाजपा अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। पहले चरण की 89 सीटों पर भाजपा ने 48 सीटें जीती। इस बार इन 89 सीटों पर चुनावी समीकरण बहुत हद तक बदले हुए हैं।

अनमोल दवे कहते हैं कि 2022 के चुनावों में गुजरात के आंदोलन प्रभावित इलाके सौराष्ट्र-कच्छ में अब न तो आंदोलन की कोई हवा है और न ही कोई बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा। यहां पर जातिगत समीकरणों को साधते हुए ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में पाटीदार आंदोलन के चलते जो बड़े नेता भाजपा के विरोध में थे, वे अब भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं। दवे का दावा है कि यही वजह है इस बार भाजपा के लिए पहले चरण के चुनाव में खासकर सौराष्ट्र क्षेत्र में राह आसान नजर आ रही है।

मोरबी में पाटीदार समुदाय का बड़ा वर्चस्व

गुजरात में पहले चरण के होने वाले विधानसभा चुनावों में इस बार कई महत्वपूर्ण सीटें भी हैं, जहां पर चुनावी समीकरण अपने लिहाज से साधे जा रहे हैं। इसमें मोरबी जैसी वह विधानसभा सीट भी है, जहां पर पुल के मच्छु नदी में समा जाने से 135 लोगों की मौत हो गई, लेकिन वहां पर यह चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। राजनीतिक विश्लेषक जतिन भाई राठौर कहते हैं कि मोरबी में जिस तरीके से जातिगत समीकरणों को साधते हुए सभी राजनीतिक दलों ने टिकट दिया है, उससे चुनाव तो बहुत ही रोचक हो गया है। उनका कहना है मोरबी में पाटीदार समुदाय का बड़ा वर्चस्व है और सभी राजनीतिक दलों ने पाटीदार समुदाय से ही जुड़े प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है। उनका कहना है कि यहां पर 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। हालांकि उपचुनाव में कांग्रेस से जीते प्रत्याशी भाजपा में शामिल हुए और दोबारा चुनाव जीते। लेकिन इस बार पार्टी ने उनको टिकट ही नहीं दिया है।

इसुदान गढ़वी की खंभालिया सीट पर भी चुनाव त्रिकोणात्मक

राठौर कहते हैं कि राजकोट पश्चिम की सीट भी इस बार रोचक मुकाबले में है। पोरबंदर में भी इस बार चुनावी मुकाबला कांटे का है। यहां पर भारतीय जनता पार्टी ने अपने वर्तमान विधायक बाबूभाई बोखाड़िया को ही चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया चुनाव लड़ रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में यहां पर बहुत कांटे की टक्कर थी और बाबूभाई बोखाड़िया ने कांग्रेस के अर्जुन मोढवाडिया को महज 19 वोटों से ही हराया था। इसी तरह आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार इसुदान गढ़वी की खंभालिया सीट भी चुनावी नजरिये से बड़ी रोचक हो गई है। इस सीट पर लड़ाई त्रिकोणत्माक को गई है। कांग्रेस ने जहां अपने मौजूदा विधायक विक्रम राम को टिकट दिया है, तो भाजपा ने मुलुभाई बेरा को चुनावी मैदान में उतारा है। गुजरात की इस सीट पर सबसे ज्यादा अहीर समुदाय से संबंध रखने वाले लोग हैं। कांग्रेस और भाजपा ने अहीर समुदाय से ही ताल्लुक रखने वाले प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि आम आदमी पार्टी के इसुदान गढ़वी के लिए जातिगत समीकरणों के आधार पर यहां चुनौती जरूर बनी हुई है। लेकिन गढ़वी की दावेदारी से क्षेत्र में चुनाव त्रिकोणात्मक और रोचक हो गया है।

गुजरात में हो रहे विधानसभा के चुनावों में पहले चरण के मतदान में 19 जिलों की 89 सीटों पर मतदान होगा। पहले चरण में गुजरात के सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात की सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इसमें गुजरात के 19 जिले शामिल हैं। जिसमें कच्छ, सुरेंद्रनगर, राजकोट, मोरबी, जामनगर, द्वारका, जूनागढ़, पोरबंदर, अमरेली, गिर सोमनाथ, बोटाद, भावनगर, भरूच, नर्मदा, डांग्स, तापी, सूरत, नवसारी और वलसाड शामिल हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक गुजरात की 182 सीटों में से तकरीबन 49 फ़ीसदी सीटों पर पहले चरण में ही मतदान हो जाएगा। राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में पहले चरण की 89 सीटों पर 66.75 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी।

विस्तार

गुजरात में गुरुवार को पहले चरण का मतदान होगा। यह मतदान 2017 के चुनावों से कई मायनों में सबसे अलग है। सबसे अहम बात तो यह है कि इस बार होने वाले पहले चरण के विधानसभा के चुनावों में 2017 की तुलना में तकरीबन 200 प्रत्याशी चुनावी मैदान में कम हो चुके हैं। यानी कि जितने प्रत्याशी 2017 में चुनाव लड़े थे, उससे 200 प्रत्याशी कम इस बार चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इसके अलावा इस बार गुजरात में चले आंदोलनों का असर भी कम है। तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि इस बार गुजरात में दो सबसे प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के अलावा इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी मैदान में डटी हुई है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गुजरात की सत्ता का रास्ता सौराष्ट्र के राजनैतिक गलियारों से होकर ही गुजरता है। इसलिए सभी राजनीतिक दलों ने यहां पर ना सिर्फ जमकर मेहनत की है, बल्कि चुनावी लिहाज से जीत हासिल करने के लिए सियासत की बिसात पर सभी राजनीतिक मोहरे सजा दिए हैं।

महज 788 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में

राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों में पहले चरण के इन्हीं जिलों की 89 सीटों पर 977  प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। जबकि इस बार 19 जिलों की इतनी ही सीटों पर महज 788 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में गुजरात में 65 राजनीतिक दलों ने चुनावी मैदान में अपने प्रत्याशी उतारे थे। गुजरात में इस बार हो रहे विधानसभा चुनावों में 200 प्रत्याशियों की कम संख्या होने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार ओम भाई राबरिया कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनावों में जिस तरीके से आंदोलनों की हवा चल रही थी और भाजपा का विरोध भी बहुत ज्यादा था। यही वजह थी कि ज्यादातर लोग भाजपा के विरोध में चुनावी मैदान में उतरे थे। हालांकि कांटे की टक्कर के बीच में भारतीय भाजपा सरकार में तो आई, लेकिन अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी।

इस बार सत्ता पक्ष का विरोध कम

ओम भाई कहते हैं कि इस बार 190 प्रत्याशियों का चुनावी मैदान में कम उतरना इस बात को दर्शाता है कि सत्ता पक्ष का विरोध उस कदर नहीं है, जितना कि 2017 के विधानसभा चुनावों में था। हालांकि उनका कहना है कि इस बार आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में मजबूत तरीके से शिरकत करने से कई जगहों पर चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है। सियासी जानकारों का मानना है कि प्रत्याशियों की कम संख्या यह जरूर बताती है कि इस बार करीब दो सौ प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि चुनावी संघर्ष नहीं हो रहा है। वरिष्ठ पत्रकार अनमोल दवे कहते हैं कि गुजरात में 2017 के हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। वह कहते हैं कि गुजरात में सत्ता का रास्ता सौराष्ट्र के गलियारों से होकर के ही गुजरता है। पहले चरण में होने वाले चुनावों में सौराष्ट्र कच्छ के साथ दक्षिण गुजरात की भी सीटें शामिल होती हैं। भाजपा को 2017 के चुनावों में दक्षिण गुजरात में मिली सफलता ने सत्ता तक तो पहुंचा दिया था, लेकिन सौराष्ट्र में कई जिले ऐसे थे, जहां भाजपा अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। पहले चरण की 89 सीटों पर भाजपा ने 48 सीटें जीती। इस बार इन 89 सीटों पर चुनावी समीकरण बहुत हद तक बदले हुए हैं।

अनमोल दवे कहते हैं कि 2022 के चुनावों में गुजरात के आंदोलन प्रभावित इलाके सौराष्ट्र-कच्छ में अब न तो आंदोलन की कोई हवा है और न ही कोई बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा। यहां पर जातिगत समीकरणों को साधते हुए ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में पाटीदार आंदोलन के चलते जो बड़े नेता भाजपा के विरोध में थे, वे अब भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं। दवे का दावा है कि यही वजह है इस बार भाजपा के लिए पहले चरण के चुनाव में खासकर सौराष्ट्र क्षेत्र में राह आसान नजर आ रही है।

मोरबी में पाटीदार समुदाय का बड़ा वर्चस्व

गुजरात में पहले चरण के होने वाले विधानसभा चुनावों में इस बार कई महत्वपूर्ण सीटें भी हैं, जहां पर चुनावी समीकरण अपने लिहाज से साधे जा रहे हैं। इसमें मोरबी जैसी वह विधानसभा सीट भी है, जहां पर पुल के मच्छु नदी में समा जाने से 135 लोगों की मौत हो गई, लेकिन वहां पर यह चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। राजनीतिक विश्लेषक जतिन भाई राठौर कहते हैं कि मोरबी में जिस तरीके से जातिगत समीकरणों को साधते हुए सभी राजनीतिक दलों ने टिकट दिया है, उससे चुनाव तो बहुत ही रोचक हो गया है। उनका कहना है मोरबी में पाटीदार समुदाय का बड़ा वर्चस्व है और सभी राजनीतिक दलों ने पाटीदार समुदाय से ही जुड़े प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है। उनका कहना है कि यहां पर 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। हालांकि उपचुनाव में कांग्रेस से जीते प्रत्याशी भाजपा में शामिल हुए और दोबारा चुनाव जीते। लेकिन इस बार पार्टी ने उनको टिकट ही नहीं दिया है।

इसुदान गढ़वी की खंभालिया सीट पर भी चुनाव त्रिकोणात्मक

राठौर कहते हैं कि राजकोट पश्चिम की सीट भी इस बार रोचक मुकाबले में है। पोरबंदर में भी इस बार चुनावी मुकाबला कांटे का है। यहां पर भारतीय जनता पार्टी ने अपने वर्तमान विधायक बाबूभाई बोखाड़िया को ही चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया चुनाव लड़ रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में यहां पर बहुत कांटे की टक्कर थी और बाबूभाई बोखाड़िया ने कांग्रेस के अर्जुन मोढवाडिया को महज 19 वोटों से ही हराया था। इसी तरह आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार इसुदान गढ़वी की खंभालिया सीट भी चुनावी नजरिये से बड़ी रोचक हो गई है। इस सीट पर लड़ाई त्रिकोणत्माक को गई है। कांग्रेस ने जहां अपने मौजूदा विधायक विक्रम राम को टिकट दिया है, तो भाजपा ने मुलुभाई बेरा को चुनावी मैदान में उतारा है। गुजरात की इस सीट पर सबसे ज्यादा अहीर समुदाय से संबंध रखने वाले लोग हैं। कांग्रेस और भाजपा ने अहीर समुदाय से ही ताल्लुक रखने वाले प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि आम आदमी पार्टी के इसुदान गढ़वी के लिए जातिगत समीकरणों के आधार पर यहां चुनौती जरूर बनी हुई है। लेकिन गढ़वी की दावेदारी से क्षेत्र में चुनाव त्रिकोणात्मक और रोचक हो गया है।

गुजरात में हो रहे विधानसभा के चुनावों में पहले चरण के मतदान में 19 जिलों की 89 सीटों पर मतदान होगा। पहले चरण में गुजरात के सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात की सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इसमें गुजरात के 19 जिले शामिल हैं। जिसमें कच्छ, सुरेंद्रनगर, राजकोट, मोरबी, जामनगर, द्वारका, जूनागढ़, पोरबंदर, अमरेली, गिर सोमनाथ, बोटाद, भावनगर, भरूच, नर्मदा, डांग्स, तापी, सूरत, नवसारी और वलसाड शामिल हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक गुजरात की 182 सीटों में से तकरीबन 49 फ़ीसदी सीटों पर पहले चरण में ही मतदान हो जाएगा। राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में पहले चरण की 89 सीटों पर 66.75 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी।



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