Gujarat Election: This Time Political Equation Has Changed In Saurashtra For Bjp – Gujarat Election: सौराष्ट्र में इस बार बदले हैं सियासी समीकरण, भाजपा इसलिए ले पा रही है राहत की सांस

Gujarat Election: BJP
– फोटो : Agency (File Photo)
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2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को सबसे बड़ा झटका कच्छ सौराष्ट्र क्षेत्र से लगा था। 54 सीटों वाले इस पूरे क्षेत्र में कांग्रेस ने करीब 60 फ़ीसदी सीटों पर कब्जा जमाते हुए 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में सियासी समीकरणों की हवा कुछ ऐसी चल रही है, जिसमें भाजपा को राहत दिख रही है। सियासी जानकारों का कहना है कि दरअसल बीते चुनावों में भाजपा का गणित बिगाड़ने वाले पाटीदार समुदाय को इस बार भाजपा ने बेहतर तरीके से साध भी लिया है और इस समुदाय की नाराजगी भी पार्टी से कम दिख रही है। पार्टी ने एक चौथाई से ज्यादा टिकट पूरे गुजरात में पाटीदार समुदाय को दिए हैं। यही नहीं भाजपा ने इस चुनाव में सीट फंसाने वाले प्रत्याशियों को ही बदल दिया।
पाटीदारों पर भाजपा ने जताया भरोसा
पिछले विधानसभा चुनावों में पाटीदार आंदोलन का असर इतना ज्यादा था कि भाजपा के लिए 2017 के चुनाव में सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण मुकाबला बन गया था। उसका असर यह हुआ कि भाजपा 1995 से लेकर 2017 के अपने सभी चुनावों में सबसे निम्नतम स्कोर 99 सीटों पर ही सिमट गई। पाटीदार आंदोलन में शामिल रहे अमरेली के जितेनभाई पटेल कहते हैं कि आंदोलन के चलते एक नाराजगी थी और उसका असर भी 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के ऊपर पड़ा था। वह कहते हैं कि भाजपा नेताओं के साथ बैठक में जब तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई और उसके बाद भाजपा ने विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी घोषित किए, तो तय हो गया कि पार्टी का भरोसा पाटीदार समुदाय पर ही बना हुआ है। मोरबी में हुई इतनी बड़ी घटना पर जितेनभाई पटेल का तर्क है कि सरकार का इसमें क्या दोष? यह घटना तो अधिकारियों की लापरवाही से हुई है। जितेन पटेल का यह तर्क बताता है कि पाटीदारों के बीच में भाजपा ने किस तरीके से मजबूत रिश्ते ना सिर्फ बनाए हैं, बल्कि उनमें भरोसा पाना शुरू कर दिया है।
गुजरात में सियासत को समझने वाले अखिल दवे कहते हैं कि भाजपा को इस बात का बखूबी अंदाजा रहा है कि पूरे गुजरात में उन्हें कमजोर करने वाला सौराष्ट्र इलाका ही था। इसीलिए इस बार लेउवा पटेलों के गढ़ सौराष्ट्र में भाजपा ने इसी समुदाय को सबसे ज्यादा टिकट भी दिए हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में सौराष्ट्र कच्छ के क्षेत्र में आने वाली 54 विधानसभा सीटों में से 30 सीटें कांग्रेस के खाते में आई थीं। जबकि 23 सीटें भाजपा और एक सीट अन्य के खातों में गई थी। गुजरात के पूर्व उपमुख्यमंत्री और पाटीदार समुदाय के बड़े चेहरे नितिन भाई पटेल कहते हैं कि इस बार सिर्फ सौराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे गुजरात में भाजपा की राह बहुत आसान है। वह मानते हैं कि 2017 का चुनाव सबसे कठिन चुनावों में से एक था। लेकिन अब सब सामान्य हो गया है। इसलिए उनका दावा है कि भाजपा ने अब तक जितनी सीटें कभी नहीं पाई हैं, वह 2022 के विधानसभा चुनाव में मिलने वाली हैं। वहीं गुजरात कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता डॉ. मनीष दोषी का दावा है कि गुजरात में भाजपा इस बार 2017 के मुकाबले बहुत पीछे जा रही है। उनका तर्क है कि भाजपा के अंदरूनी सर्वे और अपने नेताओं के बदहाल कार्यकाल के चलते ही पिछले साल गुजरात की पूरी की पूरी सरकार बदल दी गई। डॉ मनीष कहते हैं कि क्या गुजरात के लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं है, जो गुजरात की भाजपा सरकार ने किया है।
जनता की नाराजगी को देखते हुए बदले टिकट
बीते चुनाव में पाटीदार आंदोलन का असर इस कदर था कि गुजरात के 20 फ़ीसदी से ज्यादा जिलों में भाजपा अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। आंकड़ों के मुताबिक 33 जिलों वाले गुजरात में सात जिले ऐसे थे, जहां पर भाजपा शून्य पर पहुंच गई थी। इनमें अमरेली, नर्मदा, डांग्स, तापी, अरावली, मोरबी और गिर सोमनाथ जिले शामिल थे। हालांकि गुजरात में दो जिले ऐसे भी थे जहां 2017 में कांग्रेस का भी खाता नहीं खुला था। इनमें पंच महल और पोरबंदर जिला शामिल रहा। गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार हरिहरभाई राबरिया कहते हैं कि भाजपा ने इस बार ऐसी ऐसी सीटों पर टिकट बदल दिए हैं, जो न सिर्फ गुजरात सरकार में मंत्री थे बल्कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। राबरिया कहते हैं कि मोरबी में हुई इतनी बड़ी घटना के बाद भाजपा ने स्थानीय विधायक बृजेश मेरजा का टिकट बदल दिया। इसी तरीके से भाजपा ने अपने कई और प्रत्याशियों को भी बदल कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि जनता की नाराजगी जिन नेताओं से है उन सभी को बदल दिया गया है।
गुजरात में 182 विधानसभा सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए 92 सीटों की जरूरत होती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 99 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं। छह सीटें निर्दलीय और अन्य के हिस्से में आई थीं। गुजरात में अलग-अलग पार्टियों को मिलीं इन सीटों को अगर हम क्षेत्र के हिसाब से देखें तो पता चलता है कि मध्य गुजरात की 61 में से 37 सीटें भाजपा के खाते में आई थीं। जबकि कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं, अन्य के खाते में दो सीटें गई थीं। कच्छ-सौराष्ट्र क्षेत्र की 54 सीटों में कांग्रेस की 30 सीटों पर जीत हुई थीं, जबकि भाजपा के खाते में 23 सीटें आई थीं। एक सीट अन्य के खाते में गई। उत्तर गुजरात की 32 में से 17 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। जबकि 14 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। एक सीट पर कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार जिग्नेश मेवानी जीते थे। दक्षिण गुजरात में भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। इस इलाके की 35 सीटों में से 25 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। आठ सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। बाकी दो सीटों पर अन्य का कब्जा रहा था।