Meaning Of The Decrease In Voting In The First Phase Of Gujarat Election 2022 – Gujarat Election: पहले चरण में वोटिंग घटने के क्या मायने हैं, Bjp और कांग्रेस की जीती हुई सीटों पर क्या हुआ?

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गुजरात विधानसभा चुनाव 2022
– फोटो : अमर उजाला
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ऐसे में सवाल यही है कि मतदान घटने के मायने क्या हैं? मतदान घटने से किसे फायदा होगा? सवाल ये भी है कि 2017 में जिन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को जीत मिली थी, वहां क्या हुआ? पाटीदार और आदिवासी बहुल सीटों पर क्या हुआ? कितने प्रतिशत मतदान बढ़ा या घटा? आइए समझते हैं…
पहले जानिए वोटिंग में क्या हुआ?
गुरुवार को गुजरात में 19 जिलों की 89 विधानसभा सीटों पर पहले चरण का मतदान हुआ। 2007 के बाद इस बार सबसे कम वोटिंग हुई है। 2007 में इन्हीं 19 जिलों में 60 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला था।
2017 के मुकाबले किस जिले में कितनी वोटिंग घट और बढ़ी?
जिला 2017 2022
अमरेली 61.84% 57.59%
भरूच 73.42% 67.20%
भावनगर 62.18% 59.17%
बोटाद 62.74% 57.58%
डांग 73.81% 67.33%
द्वारका 59.81% 61.70%
गिर सोमनाथ 69.26% 65.94%
जामनगर 64.70% 60.02%
जूनागढ़ 63.15% 59.54%
कच्छ 64.34% 59.86%
मोरबी 73.66% 69.95%
नर्मदा 80.67% 78.24%
नवसारी 73.98% 71.06%
पोरबंदर 62.23% 59.51%
राजकोट 67.29% 60.62%
सूरत 66.79% 62.27%
सुरेंद्रनगर 66.01% 62.84%
तापी 79.42% 77.04%
वलसाड़ 72.97% 69.41%
2017 में जहां से भाजपा और कांग्रेस की जीत हुई, वहां क्या हुआ?
जिन 89 विधानसभा सीटों पर पहले चरण का चुनाव हुआ, 2017 में उनमें से 48 पर भाजपा और 38 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। जिन सीटों पर पिछली बार भाजपा को जीत मिली थी, उन पर इस बार तीन से आठ प्रतिशत तक वोटिंग में कमी देखने को मिली है। औसतन 60 प्रतिशत वोट पड़े हैं। वहीं, कांग्रेस के कब्जे वाली सीटों पर दो से 6.50 प्रतिशत तक वोटिंग में कमी देखने को मिली है। यहां औसतन 62 फीसदी वोटिंग हुई है।
ओबीसी, पाटीदार और आदिवासी बहुल इलाकों में क्या हुआ?
सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के ओबीसी बहुल इलाकों में भी कम वोटिंग देखने को मिली है। इनमें 28 सीटों पर कोली, अहीर, मेर, करडिया व अन्य ओबीसी की जातियां अधिक हैं। इनके वोटर्स की संख्या निर्णायक है। इन सीटों पर 2017 के मुकाबले करीब छह फीसदी तक कमी देखने को मिली है।
अगर पाटीदार और आदिवासी सीटों की बात करें तो यहां भी वोटिंग में भारी कमी देखने को मिली है। पाटीदार बहुल 23 सीटों पर इस बार करीब छह से आठ फीसदी कम लोगों ने वोट डाला है। 2012 में जहां, 69.36 प्रतिशत वोट पड़े थे, वहीं 2017 में 64.43% वोटिंग हुई। इस बार इन 23 सीटों पर 58.59 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला। 2012 के मुकाबले जब 2017 में इन सीटों पर वोटिंग घटी थी तो इसका भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। 2012 में भाजपा ने इन 23 में से 16 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस के खाते में केवल छह सीटें गईं थीं। एक सीट अन्य के पास गई थी। 2017 में वोटिंग घटने के बाद सीटों पर जीत-हार का भी बड़ा असर देखने को मिला। तब भाजपा 16 से 11 सीटों पर आ गई और कांग्रेस छह से 12 सीटों पर पहुंच गई थी।
इसी तरह आदिवासी बहुल 14 सीटों की बात करें तो यहां भी वोटिंग प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई है। 2012 में इन 14 सीटों पर कुल 78.97 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला था, जो 2017 में घटकर 77.83 प्रतिशत हो गई थी। इस बार इन सीटों पर कुल 69.86% लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। 2012 के मुकाबले जब 2017 में आदिवासी बहुल इन सीटों पर जब वोटिंग घटी थी तो इसका भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। 2012 में भाजपा के पास इन 14 में से सात सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस के पास छह और अन्य के पास एक सीट थी। 2017 में कांग्रेस को बढ़त मिली और भाजपा को नुकसान हुआ। तब भाजपा ने 14 में से पांच सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस के सात उम्मीदवार जीत गए। दो सीटें अन्य के खाते में भी गईं।
मतदान प्रतिशत घटने के क्या मायने हैं?
इसे समझने के लिए हमने गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार वीरांग भट्ट से बात की। उन्होंने कहा, ‘वोटिंग प्रतिशत में आई गिरावट काफी कुछ इशारा कर रही है। पुराने आंकड़े देखें तो जब भी वोटिंग प्रतिशत में गिरावट हुई है, तब भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। 2007, 2012 और फिर 2017 के चुनावी नतीजे इसके उदाहरण हैं। जहां-जहां वोटिंग प्रतिशत में कमी हुई, वहां कांग्रेस को जीत मिली। हालांकि, हर बार ऐसा हो ये जरूरी नहीं है। इसलिए ऐसा भी हो सकता है कि इस बार आई वोट प्रतिशत में गिरावट का भाजपा को फायदा हो जाए।’
भट्ट आगे कहते हैं, ‘पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार की परिस्थिति कुछ अलग है। इस बार आम आदमी पार्टी ने भी पूरी ताकत झोंक रखी है। इसके अलावा मुस्लिम बहुत इलाकों में एआईएमआईएम की मौजूदगी ने भी राजनीतिक दलों में हलचल बढ़ा दी है। ऐसे में संभव है कि वोटिंग घटने के बावजूद भाजपा इसका फायदा उठाने में कामयाब हो जाए।’
विस्तार
गुजरात के 19 जिलों की 89 विधानसभा सीटों पर गुरुवार को मतदान हुआ। पहले चरण में 63 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ। 2017 के मुकाबले इसमें करीब चार फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। 2017 में इन सीटों पर 67.20 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला था।
ऐसे में सवाल यही है कि मतदान घटने के मायने क्या हैं? मतदान घटने से किसे फायदा होगा? सवाल ये भी है कि 2017 में जिन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को जीत मिली थी, वहां क्या हुआ? पाटीदार और आदिवासी बहुल सीटों पर क्या हुआ? कितने प्रतिशत मतदान बढ़ा या घटा? आइए समझते हैं…
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