Pm Advisory Panel Working Paper Says India Rank In Global Perception Indices Declined – Global Perception: वैश्विक धारणा सूचकांकों में भारत की रैंक में गिरावट, बताई जा रही आपातकाल के समय की स्थिति

संजीव सान्याल, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य।
– फोटो : ANI
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लोकतंत्र और स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर राय-आधारित वैश्विक सूचकांकों में हाल के वर्षों में भारत की रैंकिंग में गिरावट देखने को मिली है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। इस रिपोर्ट की तीन प्रसिद्ध पश्चिमी थिंक-टैंक ने जांच की है। इसमें पाया गया है कि कमजोर और अपारदर्शी कार्यप्रणाली को एक सामान्य सूत्र के साथ इस्तेमाल किया गया, जो कुछ विशेषज्ञों की धारणाओं से प्राप्त हुए हैं।
अर्थशास्त्री संजीव सान्याल और आकांक्षा अरोड़ा द्वारा लिखित रिपोर्ट ‘क्यों भारत वैश्विक धारणा सूचकांकों में खराब प्रदर्शन करता है: तीन राय आधारित सूचकांकों का अध्ययन’ (Why India does poorly on global perception indices: Case study of three opinion-based indices) में तीन सूचकांकों पर गौर किया गया है। इनमें फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स, इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) डेमोक्रेसी इंडेक्स और वैरायटी ऑफ डेमोक्रेसी इंडेक्स शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि सरकार को विश्व बैंक से वैश्विक शासन संकेतकों (डब्ल्यूजीआई) के लिए इनपुट प्रदान करने वाले थिंक टैंकों से पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करने का अनुरोध करना चाहिए। यह अध्ययन प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की वर्किंग पेपर सीरीज में प्रकाशित हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी तीन सूचकांक लगभग पूरी तरह से धारणा पर आधारित हैं और ध्यान देने वाली बात है कि इन धारणा-आधारित सूचकांकों को केवल राय के रूप में अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे डब्ल्यूजीआई के माध्यम से सॉवरेन रेटिंग जैसी ठोस चीजों में अपना रास्ता खोजते हैं, जो इनमें से कई सूचकांकों के संयोजन पर आधारित है।
रिपोर्ट में कहा गया है ये भविष्य में और भी महत्वपूर्ण हो जाएंगे क्योंकि पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ईएसजी) सूचकांक वैश्विक व्यापार / निवेश निर्णयों में पेश किए जाते हैं। इसलिए पहले कदम के रूप में भारत सरकार को डब्ल्यूजीआई के लिए इनपुट प्रदान करने वाले थिंक टैंकों से पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करने का अनुरोध करना चाहिए। इसके बाद आगे के लिए भारत में स्वतंत्र थिंक-टैंकों को इन क्षेत्रों में शोध करने और अपने स्वयं के सूचकांकों के साथ आने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि तुलनात्मक सूचकांक उपलब्ध हों।
संजीव सान्याल वित्त मंत्रालय में प्रधान आर्थिक सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं और अब प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएम-ईएसी) के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि निवेश / व्यापार निर्णयों में ईएसजी स्कोर की बढ़ती मांग राय-आधारित सूचकांकों के इस वर्ग को और भी अधिक तथ्य प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि इन धारणा-आधारित सूचकांकों में उपयोग की जाने वाली कार्यप्रणाली के साथ गंभीर समस्याएं हैं। ये सूचकांक मुख्य रूप से अज्ञात “विशेषज्ञों” के एक छोटे समूह की राय पर आधारित हैं और इन सूचकांकों में उपयोग किए गए कुछ प्रश्न सभी देशों में लोकतंत्र का उचित पैमाना नहीं हैं।
सान्याल ने एक ट्वीट में कहा कि “मेरी रिपोर्ट इस विषय पर है कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर राय आधारित वैश्विक सूचकांकों में 2014 से भारत की रैंकिंग/स्कोर को कम क्यों किया गया है। रिपोर्ट में विशेष रूप से तीन प्रसिद्ध पश्चिमी थिंक-टैंकों की जांच की गई है और पाया गया कि हास्यास्पद रूप से इसके लिए कमजोर और अपारदर्शी कार्यप्रणाली को जिम्मेदार ठहराया गया है।समस्या यह है कि ये राय ठोस चीजों में अपना रास्ता सॉवरिन रेटिंग (विश्व बैंक के डब्ल्यूजीआई इंडेक्स के माध्यम से) में ढूंढती है। और निवेश/व्यापार निर्णयों में ईएसजी स्कोर के लिए बढ़ती मांग इस वर्ग के राय-आधारित सूचकांकों को और भी अधिक तथ्य प्रदान करेगी। इसलिए अब समय आ गया है कि थिंक-टैंक और विश्व बैंक दोनों से अधिक पारदर्शिता की मांग करनी चाहिए।”
लेखकों ने कहा कि फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स 1973 से फ्रीडम हाउस द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। नागरिकों की स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्कोर 2018 तक 42 था, लेकिन 2022 तक तेजी से गिरकर 33 हो गया। राजनीतिक अधिकारों के मामले में भारत का स्कोर 35 से 33 तक गिर गया। इस प्रकार, भारत का कुल स्कोर 66 हो गया जो भारत को “आंशिक रूप से मुक्त” श्रेणी में रखता है। यह वही स्थिति है जो आपातकाल के दौरान थी।
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) डेमोक्रेसी इंडेक्स का जिक्र करते हुए ईआईयू द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में भारत को “त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र” की श्रेणी में रखा गया है। रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग को तेजी से गिरते हुए बताया गया है। 2014 में भारत की रैंकिंग 53 थी, जो गिरकर 2020 में 27 हो गई, फिर इसमें थोड़ा सुधार हुआ और 2021 में यह 46 हो गया। रैंक में गिरावट मुख्य रूप से दो श्रेणियों- नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक संस्कृति में अंकों में गिरावट के कारण हुई है। सबसे ज्यादा गिरावट नागरिकों की स्वतंत्रता की श्रेणी में रही है, जिसके लिए स्कोर 2014 में 9.41 से घटकर 2020 में 5.59 हो गया।
सान्याल और अरोड़ा द्वारा लिखित रिपोर्ट में कहा गया है कि “नागरिकों की स्वतंत्रता के मामले भारत का नवीनतम स्कोर हांगकांग (8.53) से पीछे है। इसी तरह, राजनीतिक संस्कृति के लिए भारत का स्कोर हांगकांग (7.5) और श्रीलंका (6.25) की तुलना में बहुत कम है। यह स्पष्ट रूप से बहुत ही मनमाना लगता है।” लेखकों ने कहा कि इन सूचकांकों की एक और सामान्य विशेषता यह है कि ये सभी प्रश्नों के एक समूह पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि प्रश्नावली को पढ़ने से पता चलता है कि अधिकांश प्रश्न प्रकृति में व्यक्तिपरक हैं, इसलिए सभी देशों के लिए समान प्रश्न प्रदान करने का मतलब विभिन्न देशों के लिए तुलनीय अंक प्राप्त करना नहीं है क्योंकि सामान्य प्रश्नों का उत्तर विशेषज्ञों द्वारा बहुत अलग तरीके से दिया जा सकता है।